जा छू ले उस जमी को जिस जमी पर वो चलती हैं, उसके पैरों की माटी भी नहीं नसीब खुदा को, जो रोशनी सी झलकती हैं, कहते हैं कि. वो प्रेम का प्रीत है विणा का राग, आज फिर करता हूं प्रिये से अपनी दिल की बात. आज फिर करता हूं अपनी प्रिये से अपनी बात