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आखों की पलकें भारी हुई, जुबां पे मृषा की उधारी हु

आखों की पलकें  भारी हुई,
जुबां पे मृषा की उधारी हुई.

ना कुछ ख़रीदा ना ही बेचा,
बेवजह सबसे कर्ज़दारी हुई

मैं  जमूरा  हूँ  इस  जहाँ का,
ये   दुनिया  मेरी  मदारी हुई.

ख़ुद  को दाव  पे लगा दिया,
मोहब्बत  मेरी  जुआरी  हुई.

सच  ना  बोल  दे इस डर से,
आइनों  से  दोस्ती  यारी हुई.

सुकूँ से  सोते  देखा मुर्दे को,
मौत  ज़िन्दगी  पे  भारी हुई. बहुत ही ख़ुदगर्ज़ हूँ मैं,

ख़ुद मे एक कर्ज़ हूँ मैं.

अर्थ :- 
मृषा - झूठ 
जमूरा - बंदर
आखों की पलकें  भारी हुई,
जुबां पे मृषा की उधारी हुई.

ना कुछ ख़रीदा ना ही बेचा,
बेवजह सबसे कर्ज़दारी हुई

मैं  जमूरा  हूँ  इस  जहाँ का,
ये   दुनिया  मेरी  मदारी हुई.

ख़ुद  को दाव  पे लगा दिया,
मोहब्बत  मेरी  जुआरी  हुई.

सच  ना  बोल  दे इस डर से,
आइनों  से  दोस्ती  यारी हुई.

सुकूँ से  सोते  देखा मुर्दे को,
मौत  ज़िन्दगी  पे  भारी हुई. बहुत ही ख़ुदगर्ज़ हूँ मैं,

ख़ुद मे एक कर्ज़ हूँ मैं.

अर्थ :- 
मृषा - झूठ 
जमूरा - बंदर
itba1773705858770

writer abhay

New Creator