Nojoto: Largest Storytelling Platform

बचपन और शैतानी सभी की बचपन से जुड़ी कुछ खट्ट

बचपन और शैतानी       सभी की बचपन से जुड़ी कुछ खट्टी -मीठी यादे जरुर होती है। मेरा भी बचपन भी कुछ इनही खट्टी-मीठी यादो के साथ गुजरा है। 
ऐसा ही एक किस्सा है। जिसे जब भी याद करती हूँ ,मेरी हँसी छुट जाती हैं। तब मैं चौथी कक्षा में थी।मैं, मेरी बड़ी बहन और मेरी चचेरी बहन स्कूल से घर आ रहे थे।रास्ते में अचानक ही मेरी चचेरी बहन को एक घर के नाले के पास 30 रुपये मिले। उसने उठा लिए ।
अब कहते हैं न कि पैसै देख अच्छे अच्छो का इमान डोलने लगता है।हम तो फिर भी बच्चे थे। शरारती तो मैं थी ही।
पैसे देखते ही मेरे मन मेंआया कि कैसे भी करके ये पैसै मैं ले लू।  तो मैंने अपनी चचेरी बहन को कहा कि मैं  आन्टी को कह दूँगी कि तूने नाली में से पैसे उठाये है।वो बड़ी भोली थी इतना सुनते ही उसने पैसे वापस फेंक दिये। उसे क्या पता कि मेरे दिमाग में क्या चल रहा है?  उसके पैसे गिराते ही मैनै उठा लिये। 
अब बारी उसकी थी। उसने मुझसे कहा कि तूने मुझसे तो पैसे वापस गिरवा दिये, और खुद ने उठा लिये। मेरे पैसे मुझे वापस दो। मैनै कहा कि मैं क्यों दूँ? जब तुम्हें पैसे मिले तो तूने गिरा दिये। अब मुझे मिले तो मैंने उठा लिये। इस हिसाब से पैसे अब मेरे हो गये। 
इतना सुन उसका मन रुआँसा हो गया।उसको उदास देख मेरा दिल पिघला। मैंने उससे कहा,अच्छा ठीक है, मैं तुम्हें पैसे वापस दे दूँगी। लेकिन उसमें से दस-दस रुपये हम दोनों बहनो को देने होगे। उसने कहा ठीक है। तो इस तरह हम तीनों बहनो ने दस-दस रूपये आपस में  बाँट लिये। हम तीनों अब बहुत खुश थे-
चचेरी बहन अपने पैसे वापस पाकर
बड़ी दी-बिना किसी मेहनत के पैसे पाकर
और और सबसे ज्यादा मैं खुश क्योंकि -एक तो अपनी बहन को बेवकूफ बनाया 
दूसरा बिना मेहनत के पैसे कमा लिये। 
आज भी जब ये किस्सा याद करती हूँ मेरे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। सच में बचपन के दिन भी क्या दिन थे?............. #तीस रुपये और मैं
बचपन और शैतानी       सभी की बचपन से जुड़ी कुछ खट्टी -मीठी यादे जरुर होती है। मेरा भी बचपन भी कुछ इनही खट्टी-मीठी यादो के साथ गुजरा है। 
ऐसा ही एक किस्सा है। जिसे जब भी याद करती हूँ ,मेरी हँसी छुट जाती हैं। तब मैं चौथी कक्षा में थी।मैं, मेरी बड़ी बहन और मेरी चचेरी बहन स्कूल से घर आ रहे थे।रास्ते में अचानक ही मेरी चचेरी बहन को एक घर के नाले के पास 30 रुपये मिले। उसने उठा लिए ।
अब कहते हैं न कि पैसै देख अच्छे अच्छो का इमान डोलने लगता है।हम तो फिर भी बच्चे थे। शरारती तो मैं थी ही।
पैसे देखते ही मेरे मन मेंआया कि कैसे भी करके ये पैसै मैं ले लू।  तो मैंने अपनी चचेरी बहन को कहा कि मैं  आन्टी को कह दूँगी कि तूने नाली में से पैसे उठाये है।वो बड़ी भोली थी इतना सुनते ही उसने पैसे वापस फेंक दिये। उसे क्या पता कि मेरे दिमाग में क्या चल रहा है?  उसके पैसे गिराते ही मैनै उठा लिये। 
अब बारी उसकी थी। उसने मुझसे कहा कि तूने मुझसे तो पैसे वापस गिरवा दिये, और खुद ने उठा लिये। मेरे पैसे मुझे वापस दो। मैनै कहा कि मैं क्यों दूँ? जब तुम्हें पैसे मिले तो तूने गिरा दिये। अब मुझे मिले तो मैंने उठा लिये। इस हिसाब से पैसे अब मेरे हो गये। 
इतना सुन उसका मन रुआँसा हो गया।उसको उदास देख मेरा दिल पिघला। मैंने उससे कहा,अच्छा ठीक है, मैं तुम्हें पैसे वापस दे दूँगी। लेकिन उसमें से दस-दस रुपये हम दोनों बहनो को देने होगे। उसने कहा ठीक है। तो इस तरह हम तीनों बहनो ने दस-दस रूपये आपस में  बाँट लिये। हम तीनों अब बहुत खुश थे-
चचेरी बहन अपने पैसे वापस पाकर
बड़ी दी-बिना किसी मेहनत के पैसे पाकर
और और सबसे ज्यादा मैं खुश क्योंकि -एक तो अपनी बहन को बेवकूफ बनाया 
दूसरा बिना मेहनत के पैसे कमा लिये। 
आज भी जब ये किस्सा याद करती हूँ मेरे चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। सच में बचपन के दिन भी क्या दिन थे?............. #तीस रुपये और मैं
ridhisain5086

ridhi sain

New Creator

#तीस रुपये और मैं #कहानी