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हसीन गुनाह कर सज़ा खुशियों की ही पाते हैं, इश्क़ में

हसीन गुनाह कर सज़ा खुशियों की ही पाते हैं,
इश्क़ में इश्क़ को शहद सा टपकाते हैं..!

फ़ीकी कभी मीठी कभी ज़ाम मोहब्बत का छलकाते हैं,
हसीन गुनाह कर ज़िन्दगी को इत्र सा महकाते हैं..!

कभी रूठते कभी मनाते कभी बेहिसाब प्यार जताते हैं,
मोहब्बत को बना ख़ुदा खुद के हृदय में मंदिर सजाते हैं..!

मौसम बदलते न खुद को समझाते हैं,
दिल के आकाश में जैसे मेघ से गरजाते हैं..!

धीरे धीरे से शुरू होकर बरसात प्रेम की कराते हैं,
न बदलते हैं वचनो से अपने इश्क़ भी बख़ूबी निभाते हैं..!

छोटी से रियासत भी न होती पास में फिर भी खुशियों का महल बनाते हैं,
हँसी ख़ुशी बिता ज़िन्दगी प्रेम का अथाह सागर फैलाते हैं..!

©SHIVA KANT
  #haseenGunaah