आखिर मर भी गया वो, तो बचके कहाँ जायेगा.. ! इस मौत के बाद एक और विलादत भी तो है..!! ज़ालिम की जीत पर हर्गिज़ ना तू मायूस हो..! योमे क़यामत आखिर योमे अदालत भी तो है..! ! तू अपनी ख्वाहिशो का क्यों गुलाम बना बैठा है..! आज़ादी के लिये इक राह नफ़्से बगावत भी तो है..!! बेशर्मी से करता है गुनाह तुझे आर नहीं आती है..! अश्को से क़ल्ब धो देना ये तरीका-ए-नदामत भी तो है..!! बोलता फ़िरता है तू गैरुल्लाह की बडाई अब्दुल..! तेरे लिये एक बोल क़लिमा-ए-शहादत भी तो है..!! ©Abd #अदालत #रविश #media #Fire