वो जाते जाते भी कसक, बेहिसाब दे गए मेरी उम्रभर की वफ़ा का, हिसाब दे गए उम्र गुज़ार दी जिनकी ख़िदमत में मैंने, वो तो बेवफ़ा का मुझको, खिताब दे गए क्या थी खता मेरी भला किस से पूंछता, वो कुछ पूंछने से पहले ही, जवाब दे गए कैसे दिखाऊं दुनिया को दर्द का आलम, वो तो मुंह छुपाने के वास्ते, हिजाब दे गए मैं तो तलबगार था ज़रा सी खुशियों का, पर वो तो मुझे आफ़तों की, किताब दे गए न जान पाए 'मिश्र' उनकी घटिया हरकतें , यारो वो तो मुझे मुस्तक़िल, अज़ाब दे गए ©Bablu Kumar bablu giri