वो चाँद भी कुछ-कुछ तुम-सा है, दिल के साज़ पर तरन्नुम-सा है। कभी दिखता है, कभी छिप जाता है, शायद किसी की यादों में गुम-सा है। फरोग़-ए-शम्स से करता है दुनिया रोशन, ये इश्क़ आफताब होकर भी तबस्सुम-सा है। बज़्म-ए-तख़य्युल में मिसाल है मुहब्बत की, हक़ीक़त में आशिक़ और माशूका़ में तसादुम-सा है। जज़्बातों की इक मश्क़ बसी है इसमें, बेशक़ इसीलिए अश्क़ों का तलातुम-सा है। 'शाहीन' होकर भी पहुँच मुमकिन नहीं, हिज्र -ए-क़मर अब लगता जहन्नुम-सा है । ©Shaheen Jameel #Pwardor #kalamkaarlove #Pwians #Profoundwriters #Long_live_pw