भाग-दौड़ कुछ यूँ चल रही, रिश्तों में कमी सी खल रही। होड़ चली है आगे जाने की, बेबस सी जिंदगी मचल रही। फुर्सत किसे,चैन किसे यहाँ, मानो जिंदगी जैसे छल रही। पैंसा तो कमा लिया जैसे-तैसे, अरमानों की होली जल रही। क्या पाया,क्या खोया,पता नहीं, जिंदगी पल-पल रंग बदल रही। रोज वही दौड़ है,वही होड़ है, सबकी जिंदगी यूंही ढल रही। काम का बोझ,रिश्तों का बोझ, सचमुच ये जिंदगी सरल नहीं।। ©Diwan G #माहर_हिंदीशायर #जिंदगीनामा #Twowords