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बेवफा की बस्ती में जो मोहोब्त की गलियां हुवा करती

बेवफा की बस्ती में जो मोहोब्त की गलियां हुवा  करती हे
हम उनसे बोहोत दूर बसा करते थे,
पर एक दिन उन गलयो से निकल कर
 एक ज़ख़्मी ने दस्तक दी हमारी बस्ती में
उसने हमसे कहा चलो हमारे संग मोहोबातो की गलयो में, 
पर हमें याकि न था उस पर तो
 कहा उसने की में एक ज़ख़्मी हु तुम्हे ज़ख्म 
नहीं दूंगा।
और हमभी उसकी बातों में आकर चल दिए
मोहोब्त की गलियां देखने जो बेवफा की बस्ती में 
हुवा करती थी।
अभी तो हमने सिर्फ एक-दो गलयो में कदम रखे थे
तभी ऐसा हुवा  की उस ज़ख़्मी के सारे ज़ख्म भर गए
और उसे उसके ज़ख्म देने वाले की यद आ गई 
और मनो जैसे उसे भी बेवफा की बस्ती की  हवा सी 
लग गई थी।
इसी लिए उसने हमें ज़ख्म तो न दिए पर उन गलयो में तनहा सा छोड़ दिया
और हम उन बस्ती से अंजान भटके हुवे मुसाफिर बने रोते हुवे बैठें थे।
तभी ओ फिर से ज़ख्म खा के आये हमारे पास
वापिस से उस गलयो में सफर करवाने 
और हम भी फिरसे चल दिए उन के संग यह सोचा इसबार तो मंज़िल मिलेगी हमे
 पर फिरसे उसने तीन चार गालिया घुमा कर  अपनी औकात दिखा दी
पर इसबार तो हमभी उनकी आदतों से और उन गलयो से वाकिफ हों 
चुके थे।
और इसी लिए इस बार हम रोते हुवे उनके इंतज़ार में  न बेठे
पार उन बेवफा की बस्ती मे से रास्ता ढुंढ कर चेले आए
हमारी वफ़ा की बस्ती में जहाँ हमारे यारो की मस्ती की गलिया हुवा करती है
जहा सिर्फ ख़ुशी और दोस्तों की महफिले सजा करति हे। #बेवफाकीबस्ती , one tipe of my own life story , #stories#poetry
बेवफा की बस्ती में जो मोहोब्त की गलियां हुवा  करती हे
हम उनसे बोहोत दूर बसा करते थे,
पर एक दिन उन गलयो से निकल कर
 एक ज़ख़्मी ने दस्तक दी हमारी बस्ती में
उसने हमसे कहा चलो हमारे संग मोहोबातो की गलयो में, 
पर हमें याकि न था उस पर तो
 कहा उसने की में एक ज़ख़्मी हु तुम्हे ज़ख्म 
नहीं दूंगा।
और हमभी उसकी बातों में आकर चल दिए
मोहोब्त की गलियां देखने जो बेवफा की बस्ती में 
हुवा करती थी।
अभी तो हमने सिर्फ एक-दो गलयो में कदम रखे थे
तभी ऐसा हुवा  की उस ज़ख़्मी के सारे ज़ख्म भर गए
और उसे उसके ज़ख्म देने वाले की यद आ गई 
और मनो जैसे उसे भी बेवफा की बस्ती की  हवा सी 
लग गई थी।
इसी लिए उसने हमें ज़ख्म तो न दिए पर उन गलयो में तनहा सा छोड़ दिया
और हम उन बस्ती से अंजान भटके हुवे मुसाफिर बने रोते हुवे बैठें थे।
तभी ओ फिर से ज़ख्म खा के आये हमारे पास
वापिस से उस गलयो में सफर करवाने 
और हम भी फिरसे चल दिए उन के संग यह सोचा इसबार तो मंज़िल मिलेगी हमे
 पर फिरसे उसने तीन चार गालिया घुमा कर  अपनी औकात दिखा दी
पर इसबार तो हमभी उनकी आदतों से और उन गलयो से वाकिफ हों 
चुके थे।
और इसी लिए इस बार हम रोते हुवे उनके इंतज़ार में  न बेठे
पार उन बेवफा की बस्ती मे से रास्ता ढुंढ कर चेले आए
हमारी वफ़ा की बस्ती में जहाँ हमारे यारो की मस्ती की गलिया हुवा करती है
जहा सिर्फ ख़ुशी और दोस्तों की महफिले सजा करति हे। #बेवफाकीबस्ती , one tipe of my own life story , #stories#poetry