सुबह-सुबह अभी उंघ रहे थे उसकी आवाज कानों से टकराई कितना सोते हो आजकल देखो कितनी धूप निकल आई कुछ फिक्र कर लो गांव शहर की सिर्फ लेते रहते हो अंगड़ाई दुनिया बदल रही है तेजी से पर तुम कब बदललोगे भाई माता पिता के भाग्य बदलने आए हो पर छोड़ नहीं रहे चारपाई कभी तो निकालो कॉपी-किताब उस पर धूल की परत जम आई याद है कब गए थे कॉलेज अभी तक आई कार्ड है बनवाई नौकरियां खत्म हो रही है जब से नई निजाम है आई फिर भी क्यों नहीं सुधर रहे हो कहीं तो किस्मत होती अजमाई शायद तुम्हारी तकदीर बदल जाए बंद हो जाए जग हंसाई कब तक पड़े रहोगे बिस्तर पर कुछ करो तुम्हारी भी हो बड़ाई जब समय निकल जाएगा बंद नहीं होगी तुम्हारी रुलाई सफलता उसे ही मिलती है जाके पांव फटे बवाई मान लो बात गौतम की इसी में है तुम्हारी भलाई!!! गौतम द गेम चेंजर कब जागोगे भाई