भाव आसमान पर लोग जमी पर ठहरे किस तरह निर्वाह हो महंगाई के कड़े पहरे!! सुरसा मुहबाय खड़ी है आदमी को निगल जाने को महंगाई की तंगी से भला आम आदमी कहां ठहरे!! युवा बेरोजगार है अफसर हैं तानासाही सभ्यता सलिंता लुप्त भई कौन किसी से क्या कहे!! नैतिकता सबकी ताक में मर्यादा भी भंग हुआ भौतिकता की दौर में पिता कैसे बसर करे!! आदर्शता लुप्त हो रहा दिखावा की इस दौर में इस चमक-दमक की दुनिया में सादगी भला कैसे ठहरे!! #महंगाई का नजारा