ख्वाहिश-ए-आतिश में सुकूँ जल गया सफर-ए-हकीकत में किरदार जल गया समंदर से कम ना थी ख्वाहिशें हमारी कश्ती डूबा कर जैसे दिल बहल गया किसी राह मुलाकात हो तो बतलाना ज़ज्बात-ए-दिल में क्या-क्या पिघल गया राह-ए-सफ़र जुदा थी सदा से हमारी जो वक़्त गुजरा ख़ाक बनकर उड़ गया बेचैन रहा ताउम्र सदा मैं जिसके वास्ते उसके लिये सदा मै जैसे अजनबी बन गया फ़क़त सब चेहरे इक जैसे लगने लगें हैं खुद की हसरतों में जैसे ख़ुद ही डूब गया —Kumar✍️ ©The Unstoppable thoughts ख्वाहिश-ए-आतिश में सुकूँ जल गया सफर-ए-हकीकत में किरदार जल गया समंदर से कम ना थी ख्वाहिशें हमारी कश्ती डूबा कर जैसे दिल बहल गया किसी राह मुलाकात हो तो बतलाना