कह ना पाएँगे हम आपसे कि कितनी मोहब्बत है! जैसे किताब में रखा ग़ुलाब उल्फ़त में पहली शहादत है। जितनी काग़ज़ पर सिहाई की रफ़ाक़त है। जितनी तितलियों की कलियों से चाहत है। जैसे घटाएँ और बारिश सावन की आदत है। यूँ समझो मेरी ज़िंदगी में तू ख़ुदा की नियामत है। और कैसे बताऊँ मैं कि तुमसे कितनी मोहब्बत है! ♥️ Challenge-736 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।