अजब ही दस्तूर है इस दुनियाँ का...... अजब ही दस्तूर है इस दुनियाँ का जहाँ इंसान की पहचान भी उसके काम से हुआ करती है, उस भाषा से मैं आज भी अनजान हूँ जिसमें शब्द कुछ और आंखें कुछ और कहा करती हैं, जिसकी लाठी उसकी भैंस का मतलब अब समझ आया कि पैसे वालों की ही जीत हुआ करती है, सबूतों के अभाव में गुनाहगार की बेगुनाही पीड़ित के लिए तो सजा ही हुआ करती है, एक बात रह रहकर मेरे ज़ेहन में आती है क्या सच में दुनियाँ प्यार के दम पर चलती है, क्योंकि प्यार तो कहीं नहीं दिखता पर प्यार में धोखा और ऑनर किलिंग अक्सर सुनने मिलती है, प्यार की परिभाषा देकर प्यार ही छीन लिया जाता है, पिता के आशीर्वाद से कोई गुंडा अपनी हर जिद चलाये जाता है, जिस समर्पण और प्रेम से पिता भगवान का दर्जा पाता है, फिर क्यों इन्हें भूलकर वो सिर्फ भगवान ही बन जाता है,