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आज एक बार फिर हारा देख के अपना टूटा भरोसा जानता था

आज एक बार फिर हारा
देख के अपना टूटा भरोसा
जानता था उसके लिए ना
कोई अहमियत है मेरी
बस दिल को एतबार था
उस दोस्ती पर अपनी
क्या करूं मैं कैसे समझाऊं
इस पागल दिल को
जिसे भरोसा है उसपर इतना
की उसे कोई परवाह नही है तेरी

©sachin goyal
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sachingoyal9803

sachin goyal

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