कंधे हैं लाशें झुलीं उमीदों का टूट रहा कारवां महल भी जल रहें हैं जल रहीं हैं झोपड़ियां दफ़न हो रहा है आदमी टूट रहा है उमंगों का गुलिस्तां पर राहत कहाँ हैं लालच में डूबे आदमी को अभी भी हो रहा है लेन-देन जमाखोरी, मुनाफाखोरी का व्यापार बन रहें है बादशाह के अरमानों के मकान लड़ रही है जिंदगी घर में सड़क पर ढूंढ कर थक रहें है अस्पताल पर फ़कीरी मौज में हैं मन की कर रहा है बात वो सुनता नहीं है किसी की न लेता कोई सवाल फैला रहा है वो अन्धविश्वशों का जाल पाल रखें है उसने कई बना रखा है आईटी सेल का जाल जल रहा है आदमीं बन कर अब जिंदा लाश हो रहा है क़त्ल मिल रहा नही अब इंसाफ वक़्त कर भरोसे पर अब है आदमीं कर रहा बस इसके गुजर जाने का इंतजार। ©Vikram Prashant "Tutipanktiyan " बादशाह का मकान #Gandhi