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कुछ बेबसी पे अड़ा, कुछ जिद़ पर खड़ा। कुछ टूटा, कु

कुछ बेबसी पे अड़ा,
कुछ जिद़ पर खड़ा।

कुछ टूटा, कुछ बिखरा, 
फिर समेटे वो मुकम्मल ख्वाब बना।

कभी अधरों पर कभी भीगी पलकों पर, 
सिमटा बेबस लाचार बना।

कभी समझौते की, कभी मर्यादा की जंजीर, 
कभी हां, कभी ना, कभी बेजुबान एहसास बना।

कुछ कदमों का चलना देखा,
फिर असीमित ठहराव मिला।

अर्द्ध चांद तो कभी पूर्णिमा का चांद बनना ही हुआ,
कि फिर बदकिस्मती से अमावस का ही साया मिला।। #bebasi #laachar #poetry #ehsaas
कुछ बेबसी पे अड़ा,
कुछ जिद़ पर खड़ा।

कुछ टूटा, कुछ बिखरा, 
फिर समेटे वो मुकम्मल ख्वाब बना।

कभी अधरों पर कभी भीगी पलकों पर, 
सिमटा बेबस लाचार बना।

कभी समझौते की, कभी मर्यादा की जंजीर, 
कभी हां, कभी ना, कभी बेजुबान एहसास बना।

कुछ कदमों का चलना देखा,
फिर असीमित ठहराव मिला।

अर्द्ध चांद तो कभी पूर्णिमा का चांद बनना ही हुआ,
कि फिर बदकिस्मती से अमावस का ही साया मिला।। #bebasi #laachar #poetry #ehsaas