उसके चेहरे पर गुलाल लगा हुआ था। पूरे कपड़ों पर जैसे बिना किसी आकार का चित्र बना दिया गया हो। उसके सभी दोस्त उसके पीछे हाथों में रंग लेकर दौड़ रहे थे लेकिन उसे तो किसी और का ही इंतजार था। वो चाहता था कि जो रंग उसने अपनी पहचान छुपाने के लिए चेहरे और कपड़ों पर खुद लगाया था, अब उसे मैं लगाऊँ। मैं काफी देर तक दूर से उसकी यह बेचैनी देखती रही। उसकी नजर तो केवल मुझे ही ढूंढ रही थी। वो शायद इस पूरी दुनिया मे मुझे ही देखना चाहता था। मुझे छूकर गुजरने वाली ये हवा भी उसे बर्दाश्त नही थी। उसका वश चलता तो वो इस हवा को भी उसी तरह मार डालता जैसे उसने इंसानों को मारा था।
मैं धीरे-धीरे उसके पीछे पंहुची और हाथों में रंग लेकर जोर से चिल्लाई- ‘तरंग भारद्वाज……।’ मेरी आवाज सुनकर उसने बड़ी ही शांति से पलटकर मेरी ओर देखा। उसने मेरी आँखों में आँखें डालकर देखा और धीरे से मेरे हाथ का रंग मेरे ही हाथों अपने चेहरे पर लगाया। फिर उसने धीरे से मेरे कान में कहा- “तुम्हारे मुँह से सिर्फ ‘तरंग’ अच्छा लगता हैं मुझे।” मैं उसे देखती ही रह गई। फिर उसने कुछ सामान्य होते हुए कहा- “वैसे एक पल के लिए तो तुमने मुझे डरा ही दिया था। वैसे एक बात कहूँ, तुम्हारे प्यार के रंग के आगे यह गुलाल एक दम फीका है।” इससे पहले कि मैं उससे कुछ कह पाती, मेरे कानों में एक शोर पड़ा। बाहर किसी की लाश रंग मिले पानी में तैर रही थी। मैंने चौंककर उसकी ओर देखा तो उसके चेहरे पर एक मुस्कान तैर गई। मेरे हाथ-पैर सुन्न पड़ गए। साँसें गले में ही अटक गई। मैंने बस धीरे से इतना ही पूछा- “क्यो?”
“क्योंकि वो तुम्हें परेशान करने की कोशिश कर रहा था। तुम्हें रंग लगाना चाहता था वो, उसकी आँखों ने तुम्हारे शरीर को छुआ था और मेरे अलावा और कोई तुम्हें छुए तो उसे इसकी कीमत चुकानी होगी।” उसके चेहरे पर गुस्सा और दिल में नफरत साफ दिखाई दे रही थी।
“तो क्या तुम राज को भी इसी तरह….…?” मैं बड़ी ही मुश्किल से यह सवाल कर पाई थी।