शारीरिक-बल बुद्धि-बल की तुलना में निश्चय ही नगण्य है। बुद्धि-बल से प्रत्येक समस्या का समाधान ढूंढा जा सकता है लेकिन शारीरिक बल से केवल भार उठाने जैसे कार्य ही हो सकते हैं। अक्ल बड़ी होती है मैंस नहीं। इस तथ्य की पुष्टि निम्न कहानी करती है।
रात अंधेरी थी। सर्दी का मौसम समाप्त होने जा रहा था। लता अपने मकान के एक कमरे में अकेली सो रही थी। घर में उसके अतिरिक्त उसके वृद्ध पिता सो रहे थे। सहसा उसे एक आवाज सुनाई दी और लता की आंख खुल गई। धुप अंधेरा होने के कारण वह कुछ देख तो न सकी परन्तु उसके कानो में ये शब्द सुनाई दिए, अलमारी की चाबियां चुपचाप हमारे हवाले के दो। शोर किया तो नतीजा बुरा होगा। वह भय से कांपने लगी और उसने पदचाप से अनुभव हुआ चोर उसी के कमरे में घुस आए है। चोरो को अपने ही कमरे प्रविष्ट हुआ देख उसके तो प्राण सुख गए परन्तु उसी क्षण धैर्य और बुद्धि को सहजती हुई वह बोली, “अलमारी की चाबियां तो पिता जी के पास है और वह ऊपर के कमरे में सो रहे है। चोरो ने ऊपर जाने वाली सीढियाँ का मार्ग दिखने के लिए कहा तो लता डरती हुई परन्तु चौकन्नी होकर उठीऔर सीढियाँ की ओर चल पड़ी।
सीढियाँ के ऊपरी छोर पर दरवाजा छत पर खुलता था। दरवाजा खोलते समय लता बहुत सेहमी हुई थी। चोरों को सम्बोधित कर बोली, “पिता जी इधर बने हुए एक कमरे में सो रहे है। बड़े उतावलेपन से चोर छत की ओर लपका। जैसे ही चोर आगे गया लता ने दरवाजा बन्द कर दिया। उसके पिता जी तो छत पर थे ही नहीं। उसने चतुराई से उन्हें कमरे से बाहर छत के ऊपर ले जाकर और दरवाजा बन्द कर शोर मचा दिया। लोग लता की आवाज सुनकर इकट्ठे हो गए। चोरों को पकड़ने में देर न लगी। सच ही है कि अगर बुद्धि से काम लिया जाए तो बल बुद्धि के सामने नगण्य हो जाता है।
शिक्षा- बुद्धि, बल की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होती है।