दिल और दिमाग की जंग से निकालना है मुझे और आज फिर खुद से मिलना है मुझे ना उड़ना है मुझे ना बहना है मुझे और अब नहीं कुछ कहना है मुझे अपने खुले आसमां में सुकून से रहना है मुझे आज फिर खुद से ही मिलना है मुझे ना प्यार ,ना मोहब्बत ,ना चाहत चाहिए दोस्ती में ही खुश हूं में क्योंकि मुझे बस थोड़ी सी राहत चाहिए ज़िन्दगी कुछ और बची है इसमें suffer से safar तक जाना है मुझे आज फिर खुद से ही मिलना है मुझे। उम्मीद की जंजीरों ने जकड़ रखा है पर ख्वाइशें उड़ना चाहती है क्या सही ,क्या ग़लत इन सब से निकालना चाहती है कुछ अधूरा सा छूटा है जो पीछे बस उसी को पूरा करना है मुझे बस आज खुद से ही मिलना है मुझे ना जाने कौन सी शाम मौत का पैग़ाम ले आकर आ जाए उससे पहले उन अधूरी ख्वाइशों को पूरा करना है मुझे बस आज खु़द से ही मिलना है मुझे। दिल और दिमाग की इस जंग से निकालना है मुझे आज फिर खुद से ही मिलना है मुझे।। milna hai mujhe khusd se hi