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विधा-गज़ल। *रज़ा* *********************************

विधा-गज़ल।
 *रज़ा*
*********************************
लालाला, ललालाला, ललालाला , ललाला
222         1222         1222      122   
*********************************
बेशक  दर्द  ने  पाला   हमें   ये  जानता  है,
बाद इसके  मुहब्बत का रज़ा वो माँगता है।

घर कैसे बुलायें वो फिसलकर गिर न जाये,
के  मेरे   मकाँ  तक  एक  पाया  रास्ता  है।

के कैसे सुनायें दर्द -ए- दिल की दासताँ हम,
पल  भर  की  उदासी से न उनका वास्ता है।

मैं भी  छाँव  हिस्से  की  उन्हें  देता मगर वो,
गम  का  धूप  रब  मेरे  बदन  पे  तानता  है।

के  वो  ख्वाब  में  आये  न  निकले दर्द मेरा,
ये  दिल  सोचकर अब रात में भी जागता है।

************************************
  *बल्लू-बल*

©Balram Singh Thakur विधा-गज़ल।
स्वतंत्र-सृजन
                      *रज़ा*
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लालाला, ललालाला, ललालाला , ललाला
222         1222         1222      122   
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बेशक  दर्द  ने  पाला   हमें   ये  जानता  है,
विधा-गज़ल।
 *रज़ा*
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लालाला, ललालाला, ललालाला , ललाला
222         1222         1222      122   
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बेशक  दर्द  ने  पाला   हमें   ये  जानता  है,
बाद इसके  मुहब्बत का रज़ा वो माँगता है।

घर कैसे बुलायें वो फिसलकर गिर न जाये,
के  मेरे   मकाँ  तक  एक  पाया  रास्ता  है।

के कैसे सुनायें दर्द -ए- दिल की दासताँ हम,
पल  भर  की  उदासी से न उनका वास्ता है।

मैं भी  छाँव  हिस्से  की  उन्हें  देता मगर वो,
गम  का  धूप  रब  मेरे  बदन  पे  तानता  है।

के  वो  ख्वाब  में  आये  न  निकले दर्द मेरा,
ये  दिल  सोचकर अब रात में भी जागता है।

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  *बल्लू-बल*

©Balram Singh Thakur विधा-गज़ल।
स्वतंत्र-सृजन
                      *रज़ा*
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लालाला, ललालाला, ललालाला , ललाला
222         1222         1222      122   
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बेशक  दर्द  ने  पाला   हमें   ये  जानता  है,