कुरुक्षेत्र का मैदान तब भी था और अब भी है ,
दुश्मन अपने तब भी थे और अब भी हैं, चक्रव्यू रचते तब भी थे और अब भी हैं, बदला नज़ारा इतना है, हाथों में तब थी तलवारें और अब मुँह पर ताने हैं...
दुश्मन तब सामने ही खड़े थे और अब छुपे हुए को पह्चानने हैं,
कहते है कि इतिहास खुद को दोहराता है, लहू बहा था तब बदन का और अब दिल का बहाया जाता है... #ज़िन्दगी