चाहत है तू मेरे इस भोले और नादान से दिल की पर तेरा दिल मेरे दिल की बात समझता ही नहीं, मन्नतों के धागे बांँधे हैं हमने खुदा के हर दर पर, पर खुदा भी नाराज है मेरी मन्नत मानता ही नहीं। मेरा दिल कल्पनाओं की हकीकत में जीने लगा है, किसी भी हक़ीक़त से रूबरू होना चाहता ही नहीं। ♥️ Challenge-607 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।