जब कभी पुरानी किताब खोलकर देखता हूं, तो तुम्हारा नाम देख सोचने लगता हुं, क्या हुआ होगा उस वक्त जो मैंने तुम्हारा नाम उस पेज में लिखा होगा..........
कही कही पे कुछ लाइनें लिखी है, देखने से लगता शायद ये वो बातें हो जो तुमसे कहना चाहता था, महज कुछ शब्द जो भावपूर्ण और अर्थहीन रहे हो जो मात्र पन्नों तक सिमट गये......
कभी पन्नों पे तुम्हारे नाम के साथ बनी आकृति सोचने पे विवश करती है क्या ये मेरे भावों को प्रकट करने का माध्यम थे या महज एक मात्र कोई कला......।
मैंने अक्सर तुम्हारे नाम को कभी अकेला नहीं छोड़ा है, कभी कुछ पंक्तियां तो कभी कोई आकृति अवश्य बनाईं जिससे भविष्य में मैं याद कर सकु वो पल जिस कारण मैंने तुम्हारा नाम हर उस किताब में लिखा जिसे भविष्य में पढ़ सकूं........।
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