स्याह रातों से जानें क्यों अब बंदगी होने लगी है, लब ख़ामोश है फिर भी गुफ़्तगू सी होने लगी है। आईनें में देख लिया जिस दिन से चेहरा तेरा, जेठ की दोपहरी में भी बाद-ए-सबा बहने लगी है। लब आज़ाद है लेकिन धड़कन तेरी मुट्ठी में क़ैद है, रूह अब बदन छोड़ कर जाने को कहने लगी है। मेरी मोहब्बत का असर पानी जैसा हो गया अंजान, रंग बिखरें है ज़हाँ में ज़िंदगी बेरंग सी होनें लगी है। जबसें बरसी है तेरी इनायत अब्र बनकर मुझ पर, दुनिया तबसे मुझें मोहब्बत का देवता कहने लगी है। ग़ज़ल (मोहब्बत का देवता) #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #जश्न_ए_इश्क़ #मोहब्बत_का_देवता #ग़ज़ल #yourquotedidi #yourquote