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भारत के अन्नदाता का जो सूरत ए हाल है, उसमें क्या द

भारत के अन्नदाता का जो सूरत ए हाल है, उसमें क्या देश का विकासवाद का नारा और कथित कवायदें फिट बैठती हैं?
ये वही किसान जो जाड़ा-गरमी-बरसात बिना किसी हाइजीन के दिन-रात मेहनत करता है और तब जाकर हमें मयस्सर होती है रोटी, वो रोटी जो जिन्दा रहने के लिए जरूरी है। फिर भी #किसान वहीं पर हैं, जहाँ सदियों पहले था।
#8_दिसंबर_भारत_बन्द #StandWithFarmers #Youth4Farmers #FarmersProtest

©MANJEET SINGH THAKRAL भारत के अन्नदाता का जो सूरत ए हाल है, उसमें क्या देश का विकासवाद का नारा और कथित कवायदें फिट बैठती हैं?
ये वही किसान जो जाड़ा-गरमी-बरसात बिना किसी हाइजीन के दिन-रात मेहनत करता है और तब जाकर हमें मयस्सर होती है रोटी, वो रोटी जो जिन्दा रहने के लिए जरूरी है। फिर भी #किसान वहीं पर हैं, जहाँ सदियों पहले था।
#8_दिसंबर_भारत_बन्द #StandWithFarmers #Youth4Farmers #FarmersProtest
भारत के अन्नदाता का जो सूरत ए हाल है, उसमें क्या देश का विकासवाद का नारा और कथित कवायदें फिट बैठती हैं?
ये वही किसान जो जाड़ा-गरमी-बरसात बिना किसी हाइजीन के दिन-रात मेहनत करता है और तब जाकर हमें मयस्सर होती है रोटी, वो रोटी जो जिन्दा रहने के लिए जरूरी है। फिर भी #किसान वहीं पर हैं, जहाँ सदियों पहले था।
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©MANJEET SINGH THAKRAL भारत के अन्नदाता का जो सूरत ए हाल है, उसमें क्या देश का विकासवाद का नारा और कथित कवायदें फिट बैठती हैं?
ये वही किसान जो जाड़ा-गरमी-बरसात बिना किसी हाइजीन के दिन-रात मेहनत करता है और तब जाकर हमें मयस्सर होती है रोटी, वो रोटी जो जिन्दा रहने के लिए जरूरी है। फिर भी #किसान वहीं पर हैं, जहाँ सदियों पहले था।
#8_दिसंबर_भारत_बन्द #StandWithFarmers #Youth4Farmers #FarmersProtest