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जैसे नदी बहती है वैसे ही बहता है मेरा मन, उगाने क

 जैसे नदी बहती है वैसे ही बहता है मेरा मन,
उगाने को ज़माने में ख़ुशहाली का उपवन..!
जैसे नदी चाहती है धरा की प्यास बुझाना,
वैसे ही मेरा मन चाहता है अपनों के संग मुस्कुराना..!

जैसे नदी चाहती है बिना भेद भाव सभी के लिए हाज़िर रहना,
वैसे ही मेरा मन चाहता है रिश्तों में ख़ुशियाँ भरना..!
जैसे नदी चाहती है मर्यादा में रहना,
वैसे ही मेरा मन चाहता है प्रत्येक जन से कुछ कहना..!

जैसे नदी चाहती है कभी न सूखना,
वैसे ही मेरा मन चाहता है द्वेष भाव को मन से फूँकना..!
जैसे नदी चाहती है अंत में समुन्दर में मिलना,
वैसे ही मेरा मन चाहता है अपने पिता के चरणों में खिलना..!

©SHIVA KANT(Shayar)
  #alone #Man