वो ख़ूबसरत शाम याद है क्या तुम्हें वो आसमान का चाँद याद है तुम्हें जब वो दे रहा था गवाही मेरे इश्क़ की जब मैं डूब रहा था शोख निगाहों में तेरी बुन रहे थे सपनें हम मुक़म्मल आशियाँ के जहाँ बसती हो मोहब्बत बनके अरमां दिल के टूट कर बिखर जाना ख़्वाबों का याद हैं उस ख़ूबसरत शाम में बिछड़ जाना याद है क्या तुम्हें याद है हमारी मोहब्बत आज भी उस एक शाम का हर लम्हा याद है मुझे ♥️ Challenge-590 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।