दीप मेरे जल अकम्पित, धुल अचंचल ! सिन्धु का उच्छ्वास घन है, तड़ित् तम का विकल मन है, भीति क्या नभ है व्यथा का आँसुओं से सिक्त अंचल ! स्वर-प्रकम्पित कर दिशाएँ, मीड़ सब भू की शिराएँ, गा रहे आँधी-प्रलय तेरे लिए ही आज मंगल । ©Er.Shivam Tiwari #Likho #दीप_मेरे_जल_अकम्पित, धुल अचंचल ! सिन्धु का उच्छ्वास घन है, तड़ित् तम का विकल मन है, भीति क्या नभ है व्यथा का आँसुओं से सिक्त अंचल !