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उस दिन अंधेरे में बैठी थी तो ज़हन में कुछ सवाल आए

उस दिन अंधेरे में बैठी थी तो ज़हन में कुछ सवाल आए तो पुछतीं किससे अपने साये से पुछा।
कि ये सारे मर्द मुझे ऐसी निगाहों से क्यों देखते हैं?
क्या इसलिए कि मेरे अंग उभरे हुए हैं।
क्या इसलिए कि मेरे कपड़ो में से उन्हें मेरे अंग देखने की आदत सी हो गई हैं।
तू ही बता तूने तो मुझे दोनों ओर से देखा हैं।
ये माल लगना क्या होता हैं मुझे आज तक समझ नहीं आया क्या तुझे पता हैं।
फिर कुछ सालों बाद समझ आया कि निगाहें अपने घर पर नहीं दूसरों के घरों पर गड़ाई जाती हैं।
तू ही बता कहीं कुछ मेरी ही गलती तो नहीं हैं।
कुदरत की जरूरत की प्रक्रिया हैवानियत का रूप ले चुकी हैं।
नोच खरोंच के फेंक दिया था उन्होंने मुझे और मान मर्यादा भी मेरी ही गई।
शर्म भी मुझे ही आनी चाहिए।
तू तो मेरे साथ जन्म से हैं कभी मेरे आगे तो कभी मेरे पीछे।
तू ही बता गलती मेरी हैं क्या? #baatcheet
उस दिन अंधेरे में बैठी थी तो ज़हन में कुछ सवाल आए तो पुछतीं किससे अपने साये से पुछा।
कि ये सारे मर्द मुझे ऐसी निगाहों से क्यों देखते हैं?
क्या इसलिए कि मेरे अंग उभरे हुए हैं।
क्या इसलिए कि मेरे कपड़ो में से उन्हें मेरे अंग देखने की आदत सी हो गई हैं।
तू ही बता तूने तो मुझे दोनों ओर से देखा हैं।
ये माल लगना क्या होता हैं मुझे आज तक समझ नहीं आया क्या तुझे पता हैं।
फिर कुछ सालों बाद समझ आया कि निगाहें अपने घर पर नहीं दूसरों के घरों पर गड़ाई जाती हैं।
तू ही बता कहीं कुछ मेरी ही गलती तो नहीं हैं।
कुदरत की जरूरत की प्रक्रिया हैवानियत का रूप ले चुकी हैं।
नोच खरोंच के फेंक दिया था उन्होंने मुझे और मान मर्यादा भी मेरी ही गई।
शर्म भी मुझे ही आनी चाहिए।
तू तो मेरे साथ जन्म से हैं कभी मेरे आगे तो कभी मेरे पीछे।
तू ही बता गलती मेरी हैं क्या? #baatcheet
piyushjha6519

Piyush jha

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