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दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई। जैसे एहसान उतारता है क

दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई।
जैसे एहसान उतारता है कोई।
गुजरा जब घर से उसके याद आया।
मुझे इस घर में जानता है कोई।
पक गया है फल शायद 
तभी तो पत्थर उछालता है कोई। राहुल comboof भण्डारी
दिन कुछ ऐसे गुजारता है कोई।
जैसे एहसान उतारता है कोई।
गुजरा जब घर से उसके याद आया।
मुझे इस घर में जानता है कोई।
पक गया है फल शायद 
तभी तो पत्थर उछालता है कोई। राहुल comboof भण्डारी

राहुल comboof भण्डारी