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White द्वंद लिए सौ मन मंदिर में मुग्ध हंसी भावों क

White द्वंद लिए सौ मन मंदिर में
मुग्ध हंसी भावों को लेकर
जो चलते निष्काम जगत में
चैतन्य खोज ही लाते हैं।
मिथ्या और कल्पित इस जग में 
वो ही अभय कहलाते  हैं।

संशय  और बंधन से उठकर
काम, लोभ और मोह कुचलकर
कलि के क्लिष्ट कालचक्र में भी
जो धरम ध्वजा लहराते हैं।
मिथ्या और कल्पित इस जग में 
वो ही अभय कहलाते हैं।

घोर दंश और प्रतिकारों में
जो  वैरागी बने सहज मन
इंद्रजीत सी आभा लेकर
चिरंजीव बन जाते है।
मिथ्या और कल्पित इस जग में
वो ही अभय कहलाते हैं।

लौकिक आडम्बर की जड़ता
भाव शून्य में अर्पण करते
जो श्लाघा की क्षुधा भुलाकर 
परहित मंगल  गाते है।
मिथ्या और कल्पित इस जग में
वो ही अभय कहलाते हैं।

जीव तत्व का दर्शन शिव में
जिन्हें मिला है अंतर्मन में
जगत बोध  और अनुभव पाकर
जो तारतम्य तर जाते है।
मिथ्या और कल्पित इस जग में 
वो ही अभय कहलाते हैं।।

©विजय कुमार सुतेड़ी अभय होना
White द्वंद लिए सौ मन मंदिर में
मुग्ध हंसी भावों को लेकर
जो चलते निष्काम जगत में
चैतन्य खोज ही लाते हैं।
मिथ्या और कल्पित इस जग में 
वो ही अभय कहलाते  हैं।

संशय  और बंधन से उठकर
काम, लोभ और मोह कुचलकर
कलि के क्लिष्ट कालचक्र में भी
जो धरम ध्वजा लहराते हैं।
मिथ्या और कल्पित इस जग में 
वो ही अभय कहलाते हैं।

घोर दंश और प्रतिकारों में
जो  वैरागी बने सहज मन
इंद्रजीत सी आभा लेकर
चिरंजीव बन जाते है।
मिथ्या और कल्पित इस जग में
वो ही अभय कहलाते हैं।

लौकिक आडम्बर की जड़ता
भाव शून्य में अर्पण करते
जो श्लाघा की क्षुधा भुलाकर 
परहित मंगल  गाते है।
मिथ्या और कल्पित इस जग में
वो ही अभय कहलाते हैं।

जीव तत्व का दर्शन शिव में
जिन्हें मिला है अंतर्मन में
जगत बोध  और अनुभव पाकर
जो तारतम्य तर जाते है।
मिथ्या और कल्पित इस जग में 
वो ही अभय कहलाते हैं।।

©विजय कुमार सुतेड़ी अभय होना