दरवाज़ा कई सच्चाईयां.. दरवाज़ों के पीछे ही छिपकर कहीं रह गई मुखौटा बन दरवाज़ा.. सदा सामने ही रहा कई चीखें दबकर इनमें ही रह गई कांच सा अरमानों का टूटकर.. वहीं कहीं पर बिखरना सिसकियां कई वहीं दफ़्न हो गई पहनकर लाल जोड़ा.. नोची गई कहीं चार दिवारी में चुप दरवाज़ों की ओट थी और कई जन्मों का.. किस्सा बनकर रह गई ©Swati kashyap #WForWriters#दरवाज़ा#nojoto#nojotohindi#nojotowriter#nojotopoetry#nojotonews