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हाथों मे त्रिशूल लिए, गले में नाग लपेटे हैं शीश ऊप

हाथों मे त्रिशूल लिए, गले में नाग लपेटे हैं
शीश ऊपर गंग विराज़े, द्वितीया का चाँद भी संग में हैं

बाबा मेरे कैलाशी, अंगों में मृग छाला साजे हैं
जब करे नृत्य खुश होकर डम डम डमरू बाजे हैं

शुरु हुआ समुद्र मंथन हर कीमती समान था त्याग दिया
फिर सृष्टि की रक्षा खातिर देखो कैसे विषपान किये

संहार कर्ता जो भोले नाथ आत्म लिंग भी दान दिये
निज भक्त की इच्छा खातिर, कैलास से भी प्रस्थान किये

पीके भाँग का प्याला हुए कैसे मतवाले हैं
स्वमभू जो कहलाये बाबा मेरे भोले भाले हैं

आरंभ शिव अंत शिव जीवन के कण कण मे शिव हैं
वैरागी शिव अनुरागी शिव वैध नाथ शमशानि शिव हैं

©@nj@ni .. #Shiva #Bholenath #babashiv #bholenaath