ग़ज़ल धूप में निकलो तो यादों के शजर रक्खा करो साथ में अपनों के अपनी भी खबर रक्खा करो गर निगाहें हट गईं तो चूक सकता है निशां आप केवल अपनी मंजिल पे नज़र रक्खा करो झूठ भी है तो चलेगा मोल सच का कुछ नहीं ये ज़रूरी है कि बातों में असर रक्खा करो पैर के नीचे ही अपने साये रखने के लिये आस्माँ की छत पे कोई दोपहर रक्खा करो दोस्तो घर में विभीषण की तरह जो लोग हैं राज की बातों से उनको बेखबर रक्खा करो @धर्मेन्द्र तिजोरीवाले "आज़ाद"