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नितांत भावोद्गारी भर ले अपने मनोमय में, धारण करता

नितांत भावोद्गारी भर ले अपने मनोमय में, 
धारण करता जीवांत प्रतिरूपात;
कलाविद् वो हैं अपने कर्मों का, 
प्रारब्धा पर विचरता अनरस तो कभी शाद!

©Viraaj Sisodiya
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