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पता नहीं मुझे कौन-सी गलती का मिली सजा, जो मैं••• ज

पता नहीं मुझे कौन-सी गलती का मिली सजा,
जो मैं•••
जिस न्यायाधीश ने सुनाई फैसला,
उसने मेरी एक न सुनी।
शायद•••
बिन खता के मांगी माफी मैंने बार-बार,
कमवख्त वक्त थी कुछ ऐसी, 
ना अपील काम आया मेरा ना माफीनामा।
शायद•••
यह पटकथा पहले से ही लिखा गया हो,
मिला सजा मुझे ऐसा जो मैंने सोचा नहीं।
शायद•••
इससे अच्छा सजा मिला होता मौत की,
हां! दर्द तो होता कुछ पल का,
न गिला होता खुद से न औरो से।

झूठी आरोप का सजा ही सही,
कबूल है मुझे आपकी हर सजा।
देता हूं वचन मैं अपना•••
ताम्र उम्र कांटूगा सजा, बिना कोई गिला-शिकवा का।
सुखमय-खुशहाल जीवन हो आपका,
यही मेरा कामना है।
मेरे हिस्से की खुशी मिले आपको, 
यही  प्रार्थना है रब से मेरा।

©Pankaj kumar #दंड
pankajkumar3549

Pankaj kumar

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