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कुछ यूं खुद से बेरुख़ी हुई कि दर्द में खुद को संभा

कुछ यूं खुद से बेरुख़ी हुई
कि दर्द में खुद को संभालने का सलीक़ा न रहा...!! "रंग थे, नूर था जब करीब तू था
एक जन्नत सा था, ये जहां....
वक़्त की रेत पे कुछ मेरे नाम सा लिख के छोड़ गया, तू कहाँ?

हमारी अधूरी कहानी...."
कुछ यूं खुद से बेरुख़ी हुई
कि दर्द में खुद को संभालने का सलीक़ा न रहा...!! "रंग थे, नूर था जब करीब तू था
एक जन्नत सा था, ये जहां....
वक़्त की रेत पे कुछ मेरे नाम सा लिख के छोड़ गया, तू कहाँ?

हमारी अधूरी कहानी...."
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