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सामने मंज़िल थी और, में पीछे मुड़कर देखता रहा। सा

सामने मंज़िल थी और, में पीछे मुड़कर देखता रहा।



सामने मंज़िल थी मेरे ओर,

में पीछे मुड़कर देखता रहा।



हा मेरे अपने नहीं थे मेरे साथ

फिर भी में अपने समज रिश्ते जोड़ता रहा। शायर नही पर शायरी कर लेता हूं 
कभी कभी झूठ बोलकर रिश्ते जोड़ लेता हूं
सामने मंज़िल थी और, में पीछे मुड़कर देखता रहा।



सामने मंज़िल थी मेरे ओर,

में पीछे मुड़कर देखता रहा।



हा मेरे अपने नहीं थे मेरे साथ

फिर भी में अपने समज रिश्ते जोड़ता रहा। शायर नही पर शायरी कर लेता हूं 
कभी कभी झूठ बोलकर रिश्ते जोड़ लेता हूं