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अतीत के पन्ने कई अरसे हो गए , खुद से गुफ़्तगू किये

अतीत के पन्ने

कई अरसे हो गए , खुद से गुफ़्तगू किये हुए।
थक गया हूँ जिंदगी की इस भाग दौड़ में ।।
सोचा अतीत के पन्ने पलट, मुस्कुरा दूं  अपनी कामयाबी पे।
कमबख्त़ सुर्ख पड़े पन्ने भी उल्टा मुस्करने लगे मुझ पे।।
इन बोझिल आंखों से पलटने लगा में पन्ने अतीत के।
जैसे कोई सूखे दरख़्त की ठूठ चुभने लगी जिस्म में।।
धूल जम चुकी है उन कामयाबी के पन्नो पर
या धूल जम चुकी है आज मेरे मन के कोनो पर
पता ही न चला कि इस कामयाबी की दौड़ में छूटते गए रिश्ते।
वरना कामयाबी का हाथ छोड़ रिश्तों का दामन पकड लेता।
रह गया हूँ अकेले आज जिंदगी के इस अंधेरे में।
कब मिलेगा उजाला सोचता फिर रिश्तों के सवेरे मे।।
काश लौट जाऊँ फिर अतीत के पन्नो में।
फिर लौट जाऊं जब खुशियां थी अपनो में।।
 
                                                 -   प्रशांत मिश्रा अतीत के पन्ने। .. (अल्फ़ाज़ .. मेरे दिल से)
अतीत के पन्ने

कई अरसे हो गए , खुद से गुफ़्तगू किये हुए।
थक गया हूँ जिंदगी की इस भाग दौड़ में ।।
सोचा अतीत के पन्ने पलट, मुस्कुरा दूं  अपनी कामयाबी पे।
कमबख्त़ सुर्ख पड़े पन्ने भी उल्टा मुस्करने लगे मुझ पे।।
इन बोझिल आंखों से पलटने लगा में पन्ने अतीत के।
जैसे कोई सूखे दरख़्त की ठूठ चुभने लगी जिस्म में।।
धूल जम चुकी है उन कामयाबी के पन्नो पर
या धूल जम चुकी है आज मेरे मन के कोनो पर
पता ही न चला कि इस कामयाबी की दौड़ में छूटते गए रिश्ते।
वरना कामयाबी का हाथ छोड़ रिश्तों का दामन पकड लेता।
रह गया हूँ अकेले आज जिंदगी के इस अंधेरे में।
कब मिलेगा उजाला सोचता फिर रिश्तों के सवेरे मे।।
काश लौट जाऊँ फिर अतीत के पन्नो में।
फिर लौट जाऊं जब खुशियां थी अपनो में।।
 
                                                 -   प्रशांत मिश्रा अतीत के पन्ने। .. (अल्फ़ाज़ .. मेरे दिल से)

अतीत के पन्ने। .. (अल्फ़ाज़ .. मेरे दिल से)