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कुंडलियां छंद: पीले पत्ते पीले पत्ते  की तरह,  जी

कुंडलियां छंद: पीले पत्ते

पीले पत्ते  की तरह,  जीवन  उड़ता  नित्य।
हरी भरी जब स्वांस है, नहीं संभाले कृत्य॥
नहीं  संभाले  कृत्य, सदा बनते अभिमानी।
अहंकार  की  सेज,  सजा करते मनमानी॥
कह  दिनेश  कविराय, उम्र  भर रहे हठीले।
ढली  शाम  को  देख, हुए  सम  पत्ते पीले॥

©दिनेश कुशभुवनपुरी
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