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अहसास की बुनियाद पर बनता है कोई रिश्ता फिर विश्वा

अहसास की बुनियाद पर 
बनता है कोई रिश्ता
फिर विश्वास की दीवारें 
संभालतीं हैं
प्रेम से बनी छत
और 
जब लफ़्ज़ों में
बयाँ करना पड़े, 
किसी रिश्ते का 
महत्व 
तो पता चलता है कि 
कितनी कमज़ोर थी 
वो बुनियाद।

©Prashant Shakun "कातिब" दम तोड़ देती है एक वक्त के बाद हर उम्मीद भी
और फिर भरने लगता है अपनी ही पसंद से जी




यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यूँ है
यही होता है तो आख़िर यही होता क्यूँ है
अहसास की बुनियाद पर 
बनता है कोई रिश्ता
फिर विश्वास की दीवारें 
संभालतीं हैं
प्रेम से बनी छत
और 
जब लफ़्ज़ों में
बयाँ करना पड़े, 
किसी रिश्ते का 
महत्व 
तो पता चलता है कि 
कितनी कमज़ोर थी 
वो बुनियाद।

©Prashant Shakun "कातिब" दम तोड़ देती है एक वक्त के बाद हर उम्मीद भी
और फिर भरने लगता है अपनी ही पसंद से जी




यही दुनिया है तो फिर ऐसी ये दुनिया क्यूँ है
यही होता है तो आख़िर यही होता क्यूँ है