#राम मन व्यथा तेरे बिन कैसे दिन बीते,,हार गया हूं,अब मैं सीते, तेरे बिन ना कुछ दीखे,,कंद मूल फल लागे फीके तेरे खातिर विपिन सब छाना,,मेरी पीर स्वांम में जाना तेरे संग मेरा बंधन पुराना,,जाने ना ये मूड जमाना, धनुष तोड़ तुमको हम ब्याहे,,लेकिन सुख तुम्हें ना दे पाए मेरी किस्मत में वन लिखा,,तूने महल के सुख सब ठुकराए ऋणी राम का रोम रोम है तेरा,,तेरे बिन फिर कौन है मेरा तू ही सहर मेरी तू ही सबेरा,,,मेरे मन में है तेरा बसेरा ये तन जो पंछी बन जाए,,लंका तक उड़ कर जाए एक झलक सीता की पाए,,तब कुछ चैन भी आए मेरी विरह की कीमत दशानन को अवश्य चुकानी होगी कुटुंब समेत लंकापति को,सबकी जान गवानी होगी, ©##अनूप अंबर राम मन व्यथा #drowning