ऐसे ही फिर से रात ये बढती हुई मानो जैसे फिर से इन आंखों से नींद घटती हुई, मन में इक....बेचैनी का तूफान है आंखों में बेसब्र आंसुओं का...मानो कोई उफान है, करवटों की तलाशी ले रहा है पागल...ये मन मेरा ढूँढ रहा शायद...उसके सुकून की अब दवा कंहाँ है, दिल और दिमाग में जारी...इक अलग सा द्वंद है इक रात का मुसाफिर हैं, दूजा रोक रहा उसको अकलमंद है, शरीर के हर अंग की अपनी इस अकडाई में मैं बेचारा पीस रहा हूँ...इस अजीब सी लडाई में, इश्क़ करने की कैसी ये...मुझे सजा मिलती हुई ऐसे ही फिर से रात ये बढती हुई....रात ये बढती हुई..... ©Empty Inkwell by Rahul Sharma #इश्क़कीसज़ा #Trending