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जब जब भी सिनाँ-कश की सिनाँ दिल पे चली है इक आह मुस

जब जब भी सिनाँ-कश की सिनाँ दिल पे चली है
इक आह मुसलसल मिरे सीने से उठी है

फ़रमान-ए-हुकूमत किए जाता है तबाही
क्यूँ होंठ मिरे चुप हैं सदा दिल में दबी है

दिल बन चुका है मेरा अब इक शहर-ए-ख़मोशाँ
अरमान-ए-मुहब्बत की यहाँ क़ब्र बनी है।।

🌸🌸

©एक अजनबी
  #सिनाँ

सिनाँ-कश = तीरंदाज़
सिनाँ = तीर
शहर-ए-ख़मोशाँ = क़ब्रिस्तान

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