दलित-ए-अभिशाप ( वर्तमान ) मंज़िल-मंज़िल दर ब दर भटकती रही मै इंसाफ के लिए, थोड़े आँशुओ के साथ थोड़े गमो के दीप लिए, इस डगर से उस डगर चौखट-चौखट पसीने के खून पिए, इंसाफ़ की तलाश न मिली मुझे किसी डगर, रोते बिलखते आँशुओ के घूट पी-पी कर बिताए मैने अपने जीवन के वो अंतिम दिन, आश मन मे लिए जगह-जगह बताए मैने अपने गम, न सुना मुझे किसी ने और मुझे ही रौंद दिया, क्योंकि मैं दलित समाज की बेटी थी...२ #Dalit #gilslife #notsayingpeace #Stoprape