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hariomshrivastav7489
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Hariom Shrivastava

M.A., LL.B. Rtd. Commercial Tax Officer, Bhopal, M.P.

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Hariom Shrivastava

White -कुण्डलिया-

कोई भी घटना घटे, साधे रहते मौन।
ऐसे होते लोग जो, बोलो हैं वो कौन।।
बोलो हैं वो कौन, न जो सच को सच कहते।
अन्य लोग अन्याय, इन्हीं के कारण सहते।।
ये होते हैं भीरु, मनुजता जिनकी खोई।
इन्हें नहीं परवाह, भले घटना हो कोई।।

-हरिओम श्रीवास्तव-

©Hariom Shrivastava #Sad_Status
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Hariom Shrivastava

New Year 2024-25 -कुण्डलिया-

भटका सारा मीडिया, कुंभ पहुँचकर राह।
माला वाली की उसे, सिर्फ रही परवाह।।
सिर्फ रही परवाह, ख्याति वह कैसे पाएँ।
अजब-गजब जो दृश्य, कैमरा वहीं घुमाएँ।।
आइ आइ टी पास, एक बाबा में अटका।
भूला अपना काम, और नैनों में भटका।।

-हरिओम श्रीवास्तव-

©Hariom Shrivastava #NewYear2024-25  poetry in hindi

#Newyear2024-25 poetry in hindi #Poetry

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Hariom Shrivastava

White 

-कुण्डलिया-

ऐसा आना चाहिए, अब तो एक सुधार।
मुफ़्त बाँटना बंद हो, मिलता रहे उधार।।
मिलता रहे उधार, चाहिए जिसको जितना।
कर्जा भी हो माफ़, भले ही हो वह कितना।।
जब भी रहे चुनाव, बँटे तब खुलकर पैसा।
आए एक सुधार, शीघ्र ही अब तो ऐसा।।

-हरिओम श्रीवास्तव-

©Hariom Shrivastava #sad_quotes  hindi poetry

#sad_quotes hindi poetry #Poetry

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Hariom Shrivastava

White  - कुछ दोहे - शीर्षक- "करुणा"
------------------------------------------
1-
करुणा है अवधारणा, करुणा जीवन सार।
सब धर्मों का मानिए, करुणा ही आधार।।
2-
जहाँ नहीं करुणा दया, प्रेम और सहयोग। 
खतरनाक ऐसी जगह, और वहाँ के लोग।। 
3-
नारी है नारायणी,  इसके रूप अनेक।
प्रेम क्षमा करुणा दया, जिसमें बुद्धि-विवेक।।
4-
पीर परायी जानना, करुणा का अभिप्राय।
करुणा प्रेरक शांति की, संतों की यह राय।।
5-
करुणा से संबद्ध हैं, दया अहिंसा शांति।
यह करती निर्मल हृदय, मेटे मन की भ्रांति।।
- हरिओम श्रीवास्तव -
भोपाल, म.प्र.

©Hariom Shrivastava #Sad_Status  हिंदी कविता  हिंदी कविता

#Sad_Status हिंदी कविता हिंदी कविता

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Hariom Shrivastava

White आज कुण्डलिया दिवस की बधाई तथा     
  - तीन कुण्डलिया -
1-
कुण्डलिया का भी दिवस, आज हुआ यह ज्ञात।
कैसे कब से मन रहा, बतलाओ यह बात।।
बतलाओ यह बात,  शुरू किसने करवाया।
कितना कब विस्तार, अभी तक इसने पाया।।
बाटूँगा मिष्ठान, आज में भर-भर डलिया।
सुंदर यह  लघु छंद, मुझे लगता कुण्डलिया।।
2-
कुण्डलिया का है दिवस, अभी हुआ यह ज्ञात।
इससे सुंदर और क्या, हो सकती है बात।।
हो सकती है बात, छंद में मन की सारी।
कुण्डलिया लघु छंद, बात इसकी है न्यारी।।
जैसे सुंदर वाद्य, कृष्ण को लगे मुरलिया।
वैसे मुझे पसंद, छंद लघु है कुण्डलिया।।
3-
मेरा जो प्रिय छंद है, सबको ही है ज्ञात।
कुण्डलिया के नाम से, यही छंद विख्यात।
यही छंद विख्यात, पंक्तियाँ छैः हैं जिसमें।
कह सकते हैं बात, तरीके से हम इसमें।।
कवि गिरधर ने छंद, लिखा है यही घनेरा।
सुंदर लघु आसान, छंद कुण्डलिया मेरा।।

- हरिओम श्रीवास्तव -

©Hariom Shrivastava #sad_quotes  हिंदी कविता

#sad_quotes हिंदी कविता

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Hariom Shrivastava

- दोहा -
1-
शामत आई आजकल, नयनों की ही खूब।
कोई इन्हें लड़ा रहा, कोई जाता डूब।।
2-
दोहों में जारी अभी, ऐसा है कुछ दौर।
नयनों के अतिरिक्त अब, कथ्य न भाता और।।
-हरिओम श्रीवास्तव-

©Hariom Shrivastava  हिंदी कविता

हिंदी कविता

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Hariom Shrivastava

- दोहा -
1-
अपनी-अपनी ढपलियाँ, अपना-अपना राग।
लगा रहे नेता सभी, जाति धर्म की आग।।
2-
साध रहे हैं जो सभी, अपना-अपना स्वार्थ।
वे औरों से कह रहे, करो सदा परमार्थ।।

- हरिओम श्रीवास्तव -

©Hariom Shrivastava #GoldenHour  हिंदी कविता

#GoldenHour हिंदी कविता

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Hariom Shrivastava

White  - कुण्डलिया छंद - "सर्दी"
-----------------------------------------
सर्दी की रुत आ गयी, विगत हुई बरसात।
दिन छोटे होने लगे, लम्बी होती रात।।
लम्बी होती रात, लुढ़कता निशदिन पारा।
कंबल स्वेटर कोट, बिना अब नहीं गुजारा।।
पड़ी गुलाबी ठंड, हुआ मौसम बेदर्दी।
लगे गुनगुनी धूप, आ गयी है अब सर्दी।।

- हरिओम श्रीवास्तव -
भोपाल,म.प्र.

©Hariom Shrivastava
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Hariom Shrivastava

White  - बुंदेली में कुण्डलिया-
-------------------------------------------
सोकें उठ गय देव अब, होन लगे हैं ब्याव।
करो बरातें ठाट सै, खूब पंगतें खाव।।
खूब पंगतें खाव, लुचइँ रबड़ी रसगुल्ला।
ढोल नगाड़े बैंड, और बजनें रमतुल्ला।।
क्वाँरिन के अब ब्याव, सबइ के रेंहैं होकें।
चौमासिन के बाद, देव उठ गय हैं सोकें।।
- हरिओम श्रीवास्तव -
भोपाल, म.प्र.

©Hariom Shrivastava #Ganesh_chaturthi  हिंदी कविता  हिंदी कविता

#Ganesh_chaturthi हिंदी कविता हिंदी कविता

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Hariom Shrivastava

- कुण्डलिया -  "क्रोध"
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1-
क्रोधी को  इस बात का, रहे  न  कोई  बोध।
क्षतिकारक होता सदा, जब भी आता क्रोध।।
जब भी आता क्रोध, बुद्धि भी  है  चकराती।
भले-बुरे  की  बात, ज़रा भी समझ न आती।।
क्रोध मनुज का शत्रु, प्रगति का भी अवरोधी।
तन-मन-धन सब नष्ट, स्वयं  करता है  क्रोधी।।
2-
आता है जिस व्यक्ति को, बात-बात में क्रोध।
संभावित  नुकसान  का, उसे न रहता बोध।।
उसे न रहता बोध,  क्रोध  से  बुद्धि  नशाती।
समझाइश की बात, समझ में उसे न आती।।
अति क्रोधी इंसान, किसी  को  नहीं सुहाता।
खो देता सुख-शांति, क्रोध जिसको भी आता।।

- हरिओम श्रीवास्तव -

©Hariom Shrivastava #againstthetide  हिंदी कविता

#againstthetide हिंदी कविता

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