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jayprakashagarwa4671
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Jay Prakash Agarwal

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Jay Prakash Agarwal

जब आपकी अतिशयोक्ति पर कोई उंगली नही उठती, 
जब आपकी आंखें, आइने के आगे नही झुकती,
तब सम्भल जाना चाहिए, लोगो को तोड़ने का बहाना चाहिए। 
 
हर वो शक़्स जिसने तख्तोताज़ सम्भाले है, 
वो जानता है बख़ूब, उसने, कितने नश्तर पाले है, 

ग़ुरूर आ ही जाता है, कामयाबी के दरवाज़े पर, 
मेहेंगी कुंडी, रोशनदान किसे लटकाना अच्छा नही लगता? 
काट कर शेर के सर, लटकाते थे अपने घर, 
वो दरवाज़े आज भी बेख़ौफ़ खड़े है, 
उन सब के पीछे, किस्से बड़े बड़े है। 

जुनूं बहुत आगे ले जाता है, 
ज़मी नहीं, हवा की राह उड़ाता है, 
ऊंचाई से सब बहुत अदने नज़र आते है, 
उनमे से किसी को पहचानने से जी घबराता है, 

पर वक़्त कभी एक सा नही रहता, 
ये चक्र है, घूमता रहता है, 
सूर्य भी होता है विलीन, ग्रहण आ जाने पर,
चन्द्रमा भी हो जाता विहीन, अमावस हो जाने पर ।

कर्म का फल और कर्म की बेल, 
कहते है इसे किस्मत का खेल, 
मैं भी एक ज़र्रा हूं, ये बात जान लो,
यकीं न हो मुझपर तो पुरखो की मान लो।

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Jay Prakash Agarwal

... kabhi yu he aaya karo, 
bina kisi seelan bhare sawal ke, 
bina kisi jhijhakte khayal ke, 
bina ruke, khili khili si, 
sarsari hawa ki tarah, 
Betaqalluf, masuum ishq ke,
unwaan ki tarah, 

Milne ki lalak parwaan chadhe, 
wo aag laga ke jaana, 
Jo khaq bhi ho jaye hum, 
Aitbaar ~e~ intezaar mei, 
Apni shireen ungliyo se, 
Us par naam tera likh jaana..  #intezaar
#muhobbat
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Jay Prakash Agarwal

कोई खींचता नही अपनी तरफ, इशारों से, 
कोई खींचता नही उंगलियों के किनारों से, 
कोई सीने की धड़कनों को गिनता नही, लगा के कान अपने, 
कोई खरोंच चूभती नही चूड़ी की, 
कोई खीज जाता नही ज़ुल्फो के बिखर जाने से। 

कशिश का सबब नही, यूँ बिस्तर सिलवटों को तरस गए,
मुस्कुराते रहे हम, साफ़ कमरा देखकर, 
भीतर उमड़-घुमड़ कर, कितने बादल बरस गए। 
अचानक कांच पर लगी बिंदी न बांध लिया मुझको
मेरे पेशानी पे वो चमक उठी, 
जाने कैसे मुझमे तू नज़र आई,
हाथ बढाकर आईने को कपकपाते हुए छुआ, 
और तेरे आने की खबर आई #uskiyaadmai
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Jay Prakash Agarwal

तेरा अक़्स जब कभी आखो में उतरता है, 
मानो जस्बात के दरिया में आफ़ताब पिघलता हो,  
सरसरी सी उठती है, रूह भी सिहर जाती है,
ये आलम तो ख़ाब का है, 
मुझमे हिम्मत नही, तुझे रूबरू देखु।  #loveshayaris
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Jay Prakash Agarwal

मर ही जाते अगर उन्होनें, निगाहों से थामा न होता, 
पर ये ख़बर न थी कि आग़ोश में लेते ही होश छीन लेंगे।।
 #मुलाक़ात
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Jay Prakash Agarwal

पहला स्पर्श 

यूं सरख़ कर हाथ तेरा, मेरे जी से जा लगा, 
बात जो दबी हुई थी झट जुबां पर आ गई।
लब कांपते हैं तुम्हारे, कहना कुछ हमको भी है, 
खामोशी में सांसे अपनी, कोई गीत गुनगुना गई।

नज़रें तेरी झुकी रही, मेरी भी अटकी रही, 
दरमयां के दायरे सारे खुद-ब-खुद सीमटते गए, 
नजरें तेरी उठी, फिर मैं भी कुछ घबरा गया, 
हौले हौले हाथ तेरा, मेरे हाथों में आ गया। 

लहू में रवानी थी, आंखों में कुछ कहानी थी, 
घुमड़ आये बदरा, मैं बरसता गया तू भीगती रही 
मैं बरसता गया तू भीगती रही..
मैं बरसता गया तू भीगती रही..
 #प्रेमी #मूलाकात
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Jay Prakash Agarwal

चल मैं भी झूठा हो जाता हूं। 
तेरी हँसी को अपना मान कर, खूब टहाके लगाता हूं। 
चल मैं भी झूठा हो जाता हूं।

जब चालाकी का जामा पहना, विवेक आंसू बन बह गया
आत्मा अंतस छोड़ गयी, ये ढ़ाचा शरीर का रह गया।
मुर्दो के बाजार में, अपना मोल लगवाता हूं
चल मैं भी झूठा हो जाता हूं।

खोखली हंसी, हल्के आंसू का स्वांग बड़ा आसान है,
नादानी में ये न समझो की दुनिया बड़ी नादान है,
पाठ पढ़ाया जब जो जिसने, वाह-वाह कर उन्हें रिझाता हूं
चल मैं भी झूठा हो जाता हूं।

शिष्य गुरु का, पुत्र पिता का, मान, समान न रह गया 
विद्या, स्नेह, वात्सल्य विहीन, कोरा अभिमान रह गया 
फेर कर मूहँ, मार कर आंखे, पाँव कभी छू जाता हूं
चल मैं भी झूठा हो जाता हूं।

आने भर का झंडा लेकर, देशभक्त बन जाता हूं,
भारत माता की जय हो, ये नारा मैं खूब लगाता हूं,
घर, मोहल्ला, गांव, शहर, राज्य, देश के आड़े, 
बूढ़ी माँ को  मैं अकसर भूल जाता हूं।
चल मैं भी झूठा हो जाता हूं।

सपनों की दुकान सजाकर, बेकारों को पास बुलाकर, 
उनके आत्म-विश्वास को झकझोड़ता हूं, 
उनके इरादों को कभी तोड़ता हूं - कभी जोड़ता हूं
चटक सफ़ेद कुर्ते की, फ़टी ज़ेब में, अपनी उँगली घुमाता हूं 
चल मैं भी झूठा हो जाता हूं। #life #soul

life #Soul

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Jay Prakash Agarwal

कितने नश्तर ए अल्फ़ाज़ छुपाये बैठे हो, बताओ तो
हमें हमारे उस चेहरे से आज मिलाओ तो
झूठ मेरे हिस्से का हो या तुम्हारे हिस्से का,
किस्सा कोई फ़िर नया सुनाओ तो। 

चलो माना कि मुज़रिम हि है, निगाहों में तेरे हम,
थोड़े और कोड़े हम पर बरसाओ तो
तेरी तीखी नज़र के तेज़ाब में जलने से बेहतर 
तेरी क़ैद में उम्र गुज़ार दे
सज़ा जो हो, जैसी हो, पर कोई सज़ा सुनाओ तो। 

हम तो आशिक़ मिज़ाज़ है, 
पलको के गिरने और उठने का हिसाब रखते थे,
हम तो मुहोब्बत के पाबंद थे, 
नज़रो में कैद रह कर खुद को मलंग रखते थे
नफ़रत जो घुली उन आँखो में, दम घुटने लगा, 
आप पलक पे रखते थे, वो आशिया भी अब छूटने लगा,
अब घर कहा बसाये वो ठिकाना भी कोई बताओ तो।

खैर मैं तो तरन्नुम में बात करने का आदी हूं। 
मानो न मानो, आदमी थोड़ा जसबादी हूं
ज़िन्दगी के इस मोड़ पे आ गया हूं, 
अपनी आधी-अधूरी सी नज़्म लेकर, कहा जाए, 
 किसे सुनाए, ये ज़रा बताओ तो।
 #मुहोब्बत #जस्बात
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Jay Prakash Agarwal

सांसे हल्की धीमी हो रही है, 
भागमभाग से थोड़ा कतराता हूं,
देर रात कोई बुलाये तो अचकचा जाता हूं।
ऊब जाता हूं, बेवजह की ठिठोलिओ से,
दिन शुरू करता हूं, हरी-गुलाबी गोलियों से।

लिफ्ट के लिए इंतेज़ार अब दुर्भर नही लगता,
आने वाला कोई आये, न आये अब मूड नही बिगड़ता,
सात से सात तक किसी का साथ नही चाहिए, 
बस दो चार चाय, दो रोटी और थोड़ा सुकून चाहिए ।

इसे मायूसी न समझना, ये भी एक दहलीज़ है 
एक वक़्त था, जब ऊर्जा संभाले नही संभालती थी,
ज़ुबान बामुश्किल कभी रुकती थी

आकाशी सतरंगी सपनो में जीते थे, खुश थे ऐसा लगता था
तज़ुर्बे का झोला भरा, ज़मीन की सच्चाई उभरी, 
होश आने लगा
जो disco-dance करता था, आज ग़ज़ल गाने लगा 
 उम्र# zindagi#

उम्र# zindagi#

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Jay Prakash Agarwal

      तुम्हारी यादों के निशानिया मिटाने चला था,
डायरी के पन्ने खुरचने लगा, तो वो लहूलुहान हो गए- 
और मैं भी ।

एक एक करके जब सारे पन्नों का क़त्ल कर चुका,
तो देखा की, ज़िल्द पर भी तुम कही तनी हुई सी बैठी हो, तो कही बिखरा हुआ सा-
मैं भी।

सोचा, जला डालू ? 
आंखों में समंदर लिए, आग की तरफ बढ़े हम,
घूंटा हुआ था समंदर का तूफ़ा, बढ़ रहे थे कदम, 
कोरे पन्ने और ज़िल्द पर दोनों नाम आग में पिघलने लगे, 
आखों में समंदर भी था और आग भी, तुम भी जल रही हो-
और मैं भी। 

प्रेम की मीठी धूप, घृणा की लपटे बन गयी, 
धुँवा धुँवा था, समंदर का स्याह आंखों में, तू कीचड़ बन सन गयी। यादें जली, जला घर-बार-
और फ़िर मैं भी

शरीर को रूह ने बड़ी बेरुखी से छोड़ा, की अब कुछ भी बनू, दूसरा कोई मुझे पहचान नही पायेगा, तुम भी नही, 
और मैं भी ।

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