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drrajendrasingh5562
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Dr. Rajendra Singh 'Rahi'

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Dr. Rajendra Singh 'Rahi'

काव्यकृति 'कुण्डलिया छन्दों की अन्तर्यात्रा' का लोकार्पण

काव्यकृति 'कुण्डलिया छन्दों की अन्तर्यात्रा' का लोकार्पण #कविता

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Dr. Rajendra Singh 'Rahi'

गीत..

देख  नहीं पाते निर्धन का, जो हैं सपने चन्द। 
पूछ रहे हो क्यों ना आया, जीवन में आनन्द।। 

चुभते हैं पाँवों में पत्थर, तड़फाती जब भूख। 
उनको देखो उनकी काया, इससे जाती सूख।।  
उड़  जाते  हैं  उम्मीदों  के, तरसाते  मकरन्द। 
पूछ रहे हो क्यों ना आया, जीवन में आनन्द।। 

काट रहे जो अंधियारों में, जीवन सुविधाहीन। 
इनके हिस्से का सुख लेते, अवसरवादी छीन।। 
हो  जाती हैं इनकी आभा, घुटते- घुटते मन्द। 
पूछ रहे हो क्यों ना आया, जीवन में आनन्द।। 

चढ़ जाते हैं जिनके सपने, दो रोटी की भेट।
फुटपाथों  पर  रात अँधेरी, लेती कष्ट समेट।। 
पीड़ा से इनके उद्वेलित, ढ़लता सरसी छन्द। 
पूछ रहे हो क्यों ना आया, जीवन में आनन्द।। 

चाह  रहे हैं शब्द हमारे, लिखना उनके गीत। 
जिनके मन में शेष बचे हैं, उपहासों के प्रीत।। 
रह जाते पीड़ा में तन्मय, दरवाजे सुख बन्द। 
पूछ रहे हो क्यों ना आया, जीवन में आनन्द।। 

देख  नहीं पाते निर्धन का, जो हैं सपने चन्द। 
पूछ रहे हो क्यों ना आया, जीवन में आनन्द।। 

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
(बस्ती उ. प्र.)

©Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
  #ArabianNight
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Dr. Rajendra Singh 'Rahi'

रोला छंद.. 

कर्तव्यों  से  विमुख, नहीं  है हमको होना। 
मन  में  कटुता  बीज, नहीं  है कोई बोना।।
विनती  दर  हनुमान, छोड़ मत यूँ ही देना। 
पड़ी नाव मझधार, अगर आ करके खेना।।44 

जीवन  का  आनन्द, हुआ  है क्यों बैरागी।
यद्यपि निर्मल कृत्य, सुमंगल का अनुरागी।। 
आंजनेय से आस, दूर कर दो प्रभु दुविधा। 
'राही' हृदय विचार, कभी ना आये सुविधा।।45 

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
(बस्ती उ. प्र.)

©Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
  #sunrisesunset
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Dr. Rajendra Singh 'Rahi'

कुंडलिया छंद 

खट्टा जी होने लगा, जीवन की गति देख। 
समझ नहीं पाता यहाँ, यूँ  ही  कोई लेख।। 
यूँ  ही  कोई लेख, विधाता की यह माया। 
मुस्काता  इंसान, देखकर  अपनी काया।। 
लोभ लूट छल द्वंद्व, लगाता  दामन बट्टा। 
'राही'  दुर्मति  देख, लगा  होने  जी खट्टा।।639

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
(बस्ती उ. प्र.)

©Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
  #PhisaltaSamay
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Dr. Rajendra Singh 'Rahi'

गीत..160

तराशोगे  सपनों  को तय वो मिलेंगे। 
उदासी के आँगन में गुल हर खिलेंगे।। 

उम्मीदों  पे दुनिया  यहाँ चल रही है। 
निगाहों  में सबके खुशी पल रही है।। 
उन्हें  यूँ  न  देखो   वो  कहते  रहेंगे। 
उदासी के आँगन में गुल हर खिलेंगे।। 

जगाती  रहेंगी    हमें   उनकी  बातें। 
अँधेरों  में  कटती रही जिनकी रातें।। 
भरी आँख जो है वो इक दिन हँसेंगे। 
उदासी के आँगन में गुल हर खिलेंगे।। 

नही  ज़िन्दगी को यूँ जंजाल कहना। 
जरूरी  लिए  धैर्य संकट को सहना।। 
विवशता  के  हर घाव मन के भरेगें। 
उदासी के आँगन में गुल हर खिलेंगे।। 

तराशोगे  सपनों  को तय वो मिलेंगे। 
उदासी के आँगन में गुल हर खिलेंगे।। 

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
(बस्ती उ. प्र.)

©Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
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Dr. Rajendra Singh 'Rahi'

प्रेम...

प्रेम  है  अहसास  मन का, प्रेम पावन पंथ है।
प्रेम भावों से सुसज्जित, एक अनुपम ग्रंथ है।। 
प्रेम  है  वर्णन गुणों का, प्रेम सत की साधना। 
प्रेम  जीवन  की  तपस्या, प्रेम  है  आराधना।। 

प्रेम से गुणगान शोभित, प्रेम मोहक भव्य है। 
प्रेम लौकिक लोकरंजक, प्रेम उत्तम  द्रव्य है।।
प्रेम  है  विश्वास शाश्वत,  प्रेम  मंगल कामना। 
प्रेम  अन्तर्मन  प्रवाहित, एक निर्मल भावना।।

प्रेम है अर्पण समर्पण, प्रेम तात्विक ज्ञान है। 
प्रेम श्रद्धा से समन्वित, भावनामय ध्यान है।। 
प्रेम  है  कर्तव्य उन्मुख, प्रेम  नूतन  सर्जना। 
प्रेम  राधेकृष्ण  की है, सृष्टि साधक अर्चना।। 

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
(बस्ती उ. प्र.)

©Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
  #coldwinter
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Dr. Rajendra Singh 'Rahi'

दोहा गीत... 158

तरह-तरह की रेवड़ी, उत्तम नहीं विचार। 
बंद  करो विनती यही, सबसे है सरकार।। 

सत्ता पाने के लिए, अनुचित है यह राग। 
मिट  पाता इससे नहीं, उम्मीदों का दाग।। 
घातक होती जा रही, लोलुपता सत्कार। 
बंद  करो विनती यही, सबसे है सरकार।। 

अवसर पायें  जो यहाँ, निर्मित हो संदेश। 
जाये  ना प्रतिभा कहीं, मंशा रुष्ट विदेश।। 
कर्मों  से  अपने करें, सब सपने साकार। 
बंद  करो विनती यही, सबसे है सरकार।। 

उत्पादन हो  देश में, औद्योगिक निर्माण। 
सरकारें  सारी करें, जनमानस कल्याण।। 
मुस्कायें  तत्पर युवा, मन में नहीं विकार। 
बंद  करो विनती यही, सबसे है सरकार।। 

मुफ्त नहीं धन बांटिए, बन ना जाये रोग। 
जिम्मेदारी  यह बड़ी, हो उन्नति उपयोग।।
बढ़ने मध्यम पर लगा, इससे भारी भार। 
बंद  करो विनती यही, सबसे है सरकार।। 

तरह-तरह की रेवड़ी, उत्तम नहीं विचार। 
बंद  करो विनती यही, सबसे है सरकार।। 

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
(बस्ती उ. प्र.)

©Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
  #WritersSpecial
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Dr. Rajendra Singh 'Rahi'

गीत.. 157 

जो  देते  दूषित  मंशा से,  सीधे  जन को शूल। 
महक नहीं सकता आँखों में, उनके कोई फूल।। 

धोखा  देने का जो करते, काम यहाँ हर- रोज। 
वह हैं करते विश्वासी की, अपने हित में खोज।। 
आम  कहाँ  से  पायेंगे  जब, बोया पेड़ बबूल। 
महक नहीं सकता आँखों में, उनके कोई फूल।।  

दर्पण  में  वैसा  ही  दिखता, होता  जैसा रूप। 
वस्त्र  बदलने  से  ही  कोई, बनता नहीं अनूप।।
दुर्भावों  में  आकर  जाते, जो सज्जनता भूल। 
महक नहीं सकता आँखों में, उनके कोई फूल।।

समय चक्र के आगे फीके, बड़े- बड़े बलवान। 
अहंकारवश धन- दौलत के, जो ना देते ध्यान।।
मन में फैली लोभ-लूट की, जिनके मोटी धूल। 
महक नहीं सकता आँखों में, उनके कोई फूल।। 

जो  देते  दूषित  मंशा  से, सीधे  जन को शूल। 
महक नहीं सकता आँखों में, उनके कोई फूल।।

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
(बस्ती उ. प्र.) 
वसूल,

©Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
  #delicate
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Dr. Rajendra Singh 'Rahi'

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Dr. Rajendra Singh 'Rahi'

155..प्यार के दो गीत.. 

प्यार  के दो गीत गा पाये नहीं तो क्या हुआ। 
हम गले अपने लगा पाये नहीं तो क्या हुआ।  

रह  गई हर ख्वाहिशें मन में धरी की ही धरी, 
ज़िन्दगी उनको बना पाये नहीं तो क्या हुआ। 

चाहते तो थे भुला दें याद गुज़र-ए वक़्त की,
पर  इसे  यूँ ही भुला पाये नहीं तो क्या हुआ। 

वो रहे खाते वफा की क़सम झूठी रात-दिन,
बेवफ़ा  हैं  वो  बता पाये नहीं तो क्या हुआ। 

जानते  थे  वो  घिरे हैं मुश्किलों में हम यहाँ, 
वो किए वादा निभा पाये नहीं तो क्या हुआ। 

पाँव  में ठोकर लगी हम लड़खड़ाने थे लगे, 
हाथ वो अपना बढ़ा पाये नहीं तो क्या हुआ। 

गा रहे हो गीत जो 'राही' यहाँ पर आज तुम
वक़्त पे इसको सुना पाये नहीं तो क्या हुआ। 

डाॅ. राजेन्द्र सिंह 'राही'
(बस्ती उ. प्र.)

©Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
  #WritersSpecial
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