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krishnajangir6344
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krishna jangir

Instagram - dhadakate_alfaa or krishnajangir0029

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krishna jangir

हसरते भुला कर वो यादो का शहर खोजने चला ,
हा वो एक पहर फिरसे रो पड़ा है।

नदारद हुए थे वो सरे आसमा के तले,
क्या सच बोलने का बवाल हुआ था ये।

वो चार दिवारी में बेहिसाब बेईमान कहा गया,
वो बिन नकाब के बेनकाब किये गया।
क्या ये जुर्म था कि वो सपने भी ,
बेहिसाब देखा करता ।
©(krishna jangir) हसरते भुला कर वो यादो का शहर खोजने चला ,
हा वो एक पहर फिरसे रो पड़ा है।

नदारद हुए थे वो सरे आसमा के तले,
क्या सच बोलने का बवाल हुआ था ये।

वो चार दिवारी में बेहिसाब बेईमान कहा गया,
वो बिन नकाब के बेनकाब किये गया।

हसरते भुला कर वो यादो का शहर खोजने चला , हा वो एक पहर फिरसे रो पड़ा है। नदारद हुए थे वो सरे आसमा के तले, क्या सच बोलने का बवाल हुआ था ये। वो चार दिवारी में बेहिसाब बेईमान कहा गया, वो बिन नकाब के बेनकाब किये गया।

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krishna jangir

मुस्कुराहट दस्तक देती रही ,
तू आँशुओ से मुलाकात करता रहा।
मुहब्बत को भुला करके,
तू नफरतों को पुकारता रहा।
जमाना बातें करता जिंदगी की,
और तू इसे ही मौत समझ बैठा।
खुद  यक़ीन करने को बोला था ,
तू यक़ीनन खुदा को ही गलत समझ बैठा।
आये हो जिस गली मुसाफिर ही हो, 
मालिक बनने की ये क्या कुबत कर बैठा।
©dhadakate alfaaz
(krishna jangir) 🙂

🙂

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krishna jangir

 मजदुर

मजदुर #nojotophoto

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krishna jangir

 #life
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krishna jangir

Problems अंतिम हु, अस्मर्थ नही।

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krishna jangir

इस मिट्टी को देश की मिट्टी में मिलाने से पहले,
तिरंगा ओढना चाहते है राख हो जाने से पहले।
©धड़कते अलफ़ाज़ इस मिट्टी को देश की मिट्टी में मिलाने से पहले,
तिरंगा ओढना चाहते है राख हो जाने से पहले।
©धड़कते अलफ़ाज़

इस मिट्टी को देश की मिट्टी में मिलाने से पहले, तिरंगा ओढना चाहते है राख हो जाने से पहले। ©धड़कते अलफ़ाज़

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krishna jangir

#OpenPoetry वो फुर्सतो का इतवार सा और ,
मै उसके इंतजार में निकलता शनिवार की रात सा,
वो महकती इत्र की खुशबू,
 तो मै उसमे घुलने को बेक़रार सा,
वो दरिया थी तो ,
मै उसमे डूबने को तैयार सा,
वो इश्क थी तो मै भी,
आशिकी को बेताब सा। 
©krishna jangir #OpenPoetry
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krishna jangir

chithi

chithi

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krishna jangir

एक तरफा

एक तरफा

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krishna jangir

आशिकी

आशिकी

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